Sunday, February 22, 2015

शर्त

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मौन सर्वार्थसाधनम्!
मैं जो जानता हूं, जितना जानता हूं, जिस तरह भी जानता हूं...सबकुछ इसी दुनिया से है; फिर आत्मप्रकाशन का लोभ कैसा? अपने को ज्ञानी और विद्वान कहे जाना की महत्त्वाकांक्षा क्यों? क्यों यह लिप्सा कि मेरी मुक्तकंठ प्रशंसा के साथ प्रशस्ति गान हो? 
जो सर्वज्ञाता है, जो सर्वद्रष्टा है, जो जानता है कि पीछे क्या हुआ और कल क्या होगा...जो यह भी जानता है कि दुनियावी गतिविज्ञान में मनुष्य की चेतना और भौतिक जीवद्रव्य की क्या और कितनी भूमिका है...जो यह भी जानकारी रखता है कि आने वाले समय में सामान्य चीजें बचेंगी, श्रेष्ठ नष्ट होगा? जो इस बात से पूरी तरह वाकिफ है कि अब सूर्योदय लम्बे होंगे, अधिक तापशील और प्रखर। जिसे इस बात तक का भान है कि इस दुनिया में बीमारियों का अंतहीन साम्राज्य होगा? जो यह भी जानता है कि सत्य अब बोलने से नहीं मौन रहने पर मुखरित, तेजमान और आलोकित होगा उसके लिए किसी भी शर्त का भागी बनने पर न तो कोई ग्लानि है और न ही शोक-दुःख!

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कल रात शर्त लगी। मेहरारू से। उसे कहा कि नैक टीम बीएचयू आ रही है और उसके निदेशक को मैंने एक ई-मेल लिखा है। उसने पूछा? काहे के लिए? मैंने कहा-बीएचयू में शोध की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए और मुझ जैसे होनहार और प्रतिभाशाली विद्याार्थी के शोध-कार्य को तवज्जो और समय से शोध-अध्येतावृत्ति देने के लिए। उसने कहा-जवाब दिया किसी ने? मैंने-कहा-जरूर कुछ होगा! उसने कहा-नहीं हुआ तो? मैंने कहा-जो तुम कहो सो...!
‘यह सब नौटकी सदा के लिए बंद।’
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