Sunday, February 22, 2015

वाह! रजीबा वाह!

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कुंवर नारायण का ‘आत्मजयी’ नचिकेता 
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नहीं चाहिए तुम्हारा यह आश्वासन/जो केवल हिंसा से अपने को सिद्ध करता है/नहीं चाहिए यह विश्वास जिसकी चरम परिणति हत्या हो/मैं अपनी अनास्था में अधिक सहिष्णु हूं/अपनी नास्तिकता में अधिक धार्मिक/अपने अकेलेपन में अधिक मुक्त/अपनी उदासी में अधिक उदार।

















(यदि झूठी सत्ता सत्य बखाने, आमजन को प्रताड़ित करे, स्त्रियों को नानाप्रकार की प्रताड़ना दे, ज्ञानाश्रयी चेतना को सही ज्ञानोपलब्धि एवं चिंतन का अवसर न दे, बच्चे जहां अपनी चेतना, समृति और संस्कार से पूरी तरह कट चले हों; वहां समझों कि प्राकृतिक खदानें लावा से सराबोर हो चुकी हैं और यह दुनिया अपनी मृत्यु के आखिरी चरण पर जा पहुंची है।....wait pls)

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