Sunday, February 22, 2015

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के एक शोध विद्यार्थी का अकादमिक कार्य-संस्कृति, गतिविधि एवं कार्यों पर एक आवश्यक टिप्पणी।

Rajeev Ranjan

<rajeev5march@gmail.com>
Wed, Feb 18, 2015 at 10:19 AM
To: .director.naac@gmail.com
मामूली संशोधन के साथ जिसका कोई प्रत्युत्तर अब तक प्राप्त नहीं हुआ है
प्रतिष्ठा में,
निदेशक,
राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद।

विषय: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के प्रति बरते जाने वाली संवेदनहीनता और आपसी संवादहीनता के सम्बन्ध में।

मान्यवर,

आने वाले दिनों में आपकी टीम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पहुंच रही है; यह हमारे लिए अत्यंत हर्ष तथा प्रसन्नता का विषय है। आपकी यह यात्रा अकादमिक दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण है। आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पठन्-पाठन, अध्ययन-अध्यापन, शोध-अनुसन्धान सम्बन्धी गतिविधियों, गुणवत्तापूर्ण स्थिति, स्तरीयता, जरूरी अकादमिक सुविधाओं की उपलब्धता, अकादमिक कार्य-व्यवहार एवं कार्य-संस्कृति आदि विभिन्न आधारों-मापदंडों पर इस विश्वविद्यालय को आवश्यक वरीयता अपने मूल्यांकन के तत्पश्चात प्रदान करेंगे, जो निश्चित तौर पर हमारे लिए उल्लेखनीय और आत्म-गौरव का विषय होगा।

महोदय, मेरी कुछ चिंताएं हैं  जिसे एक विद्यार्थी की आपत्ति के रूप में आपके द्वारा दर्ज किया जाना चाहिए::

1. क्या आप यहां के गुणवत्तापूर्ण अकादमिक शोध-अनुसन्धान, नवोन्मेष, अन्तरानुशासनिक प्रयासों की भी समीक्षा, व्याख्या और विश्लेषण करेंगे?
2. क्या आप यह देखेंगे कि शोध-कार्य में संलग्न निष्ठावान विद्यार्थियों के लिए यह विश्वविद्यालय क्या, कैसा और किस तरह का सहयोग-समर्थन अथवा रवैया बरत रहा है?
3. क्या आप यह भी पड़ताल करेंगे कि यहां होने वाले शोध-कार्यों की समाजोपयोगी-मूल्य क्या है?
4. अकादमिक स्तरीयता, महत्त्व और गुणवत्ता की दृष्टि से उन कार्यों को बढ़ावा देने के लिए शोधार्थियों को किस प्रकार की सहूलियत प्रदान की जा रही है?
5. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जो शोध-अध्येतावृत्ति प्रदान करता है; उस आर्थिक सहयोग की दृष्टि से शोध-परिणाम किस प्रकार मौलिक चिंतन-प्रक्रिया का हिस्सा है? क्या उन्हें बौद्धिक सम्पदा अधिकार के अन्तर्गत विशेष तौर पर वर्गीकृत, उल्लेखित और अभिसारित किया जा सकता है?

महोदय, मेरा अपना अनुभव बेहद ख़राब है और मन खट्टा। अनुसन्धान की दशा-दिशा देखकर मन कचोटता है कि यहां इस तरह कार्य करने और अपना शत-प्रतिशत देने का क्या अर्थ, महत्त्व और उपलब्धि, जिसे अंततः दस्तावेजों के टकसाल में दीमक और कीड़ों के हवाले हो जाना है? संचार का विद्यार्थी हूं, लेकिन यहां इस विश्वविद्यालय में जबर्दस्त संवादहीनता है, और संवेदनहीनता भी। अगर आपको जरूरी मालूम दिया, तो मैं हरसंभव साक्ष्य आपको उपलब्ध करा सकता हूं।
सादर,

भवदीय
राजीव रंजन प्रसाद,
वरिष्ठ शोध अध्येता
(जनसंचार एवं पत्रकारिता)
प्रयोजनमूलक हिन्दी,
हिन्दी विभाग,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
वाराणसी-221005
ई-मेल: rajeev5march@gmail.com
मो.: 07376491068

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