Thursday, February 26, 2015

वित्त मंत्री अरुण जेटली के नाम ख़त

प्रिय वित्त मंत्री जी,
भारत सरकार।

 26 फरवरी, 2015
वाराणसी

मान लीजिए आपको भारत की जगह अमेरिका में गुजर-बसर करने के लिए जगह दे दी जाए। वहीं से मंत्री बनने और राजनीति करने का मौका, तो आप स्वीकार करेंगे? क्या दिक्कत है कि आपका पूरा सरकारी महकमा ही अमेरिका के किसी दिव्य शहर में शिफ्ट कर दी जाए, तो हम भारतीयों को कितना गर्व होगा यह कहते हुए कि हमारे नेता अपनी ज़बान का ख़तना कराकर अंग्रेजी बोलने में ही दक्ष और प्रवीण नहीं हैं; बल्कि वे वैश्विक होती राजनीति का मिसाल पेश करने के लिए देशगत सीमाओं और परिधियों को त्यागकर पश्चिमी दुनिया के बेताज बादशाह कहे जाने वाले अमेरिका में जाकर अपना संचालन-केन्द्र स्थापित कर चुके हैं। माननीय प्रधानमंत्री की तो वहां पहले से ही जय-जय है। आपसब का भी वहां ‘शिफ्टिंग हो जाएगा, तो सबसे बड़ा फायदा हम भारतवासियों को यह होगा कि हम आए दिन होने वाले राजनीतिक तमाशों और नौटंकियों से बच जाएंगे। हमारे अख़बार राजनीतिक ख़बरों के बटोर से गजमजाया नहीं रहेगा। भारतीय ख़बरिया चैनलों पर अटपटी और घिसी-पिटी राजनीतिक चर्चाएं बंद हो जाएंगी।

इससे आपको भी कुछ विदेशी संस्कार, रहन-सहन, जीवन-शैली अथवा रंग-ढंग सीखने का सुअवसर मिल सकेगा। आप वहां की आर्थिक समृद्धि और सामाजिक सम्पन्नता को देखकर अपना हिया जुड़ाएंगे और अपने मुल्कवाासियों के उद्धार के लिए शत-प्रतिशत प्रयत्न करेंगे। आप वहां रहकर यह देख पायेंगे कि क्या और कौन से वे कारक और कारण है जिनकी वजह से वहां के विश्वविद्यालय टाॅप 200 में गिने जाते हैं;  जबकि हर साल हमारे देश में वैसे एक भी विश्वविद्यालय न होने का रोना रोया जाता है। आप वहां से भारत के लिए जो अस्त्र-शस्त्र और हथियार खरीदते हैं या सैन्य-व्यापार करते हैं; उसकी भी जरूरत नहीं होगी; क्योंकि आपके सरकार की बराक से इतनी आत्मीयतापूर्ण और नजदीकी लगाव व मित्रवत् सम्बन्ध है कि भारत के साथ की गई कोई भी गुस्ताखी या ज्यादती को अमेरिका अपने साथ की जाने वाली धृष्टता मानकर आपका अधिकतम सहयोग, समर्थन करेगा। तो बताइए कि आप जाना चाहेंगे? देश की जनता से आपको और आपकी सरकार को वहां भेजने के लिए जनमत इक्ट्ठा कराने का हम पावन-कार्य राजी-खुशी करने का हरसंभव प्रयास करेंगे।

नहीं, क्यों नहीं? अब आप दर्शन मत बघारिए कि देश की जनता से आपको बेइंतहा लगाव और प्यार है। अरे महराज! देशहित में विकास, गरीबों के लिए विकास आदि आपलोगों के जुमले गरीबों और आम-आदमी पर शोषण के लिए ही मुफ़ीद जान पड़ते हैं। आम-आदमी की ज़मीन पर सरकारी सहमति के बरास्ते कारपोरेट कंपनियां काबिज होंगी; वे अपना मनोनुकूल कारोबार और खरीद-फ़रोख्त करेगी; कमीशनखोर और भ्रष्ट नेताओं का जेब भरेगी; उनकी आय और संपत्ति की घोषणा में लखपति होते हुए करोड़ों का श्रीवृद्धि कराएगी....हाय! पड़े इस नियत को, बीमारी लगे इस सोच को, शमशान जाए यह बुद्धि-विचार-भावना; बशर्ते मैं कतरा भर सच के सन्दर्भ में यह सब शापित कह रहा होउं।

मंत्री महोदय,भारतीय जनता आप जैसे नेताओं से तंग आ चुकी है जो अपनी सुविधानुसार भूमि-अधिग्रहण के मसले पर टीका-टिप्पणियां किया करते हैं। आपकी अपनी ज़मीन जाती और आप सरकार की पीठ ठोंकते रहते, तो न देखते। उस समय आप भी छाती कूटते हुए सरकार को तरह-तरह से गरियाते, उसकी भत्र्सना और थू-थू करते। यही नहीं आप की ज़मी भी इस तरह पैसों की नोंक पर लुटी जाती, तब आपकी विद्वता और समझदारी का असली रूप-अर्थ देखने में आता।

छोड़िए मंत्री जी, आज आपको संसद में हिन्दी में बोलते देख हर्षित हुआ और मुग्ध भी। यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई कि हमारे देश के वित्त मंत्री को हिन्दी बोलने और शब्द ठीक-ठीक उच्चारण करने आता है।  आप चाहे जिस हीनता-बोध से न बोलते हों; लेकिन यह जान जाइए कि आपके माननीय नरेन्द्र मोदी जी यदि मजाकवश भी कुछ महीने हिन्दी में न बोलें, तो जनता उन्हें उनके साथ ऐसे ही व्यवहार करेगी; जैसी सजा आज की तारीख में कांग्रेस भुगत रही है।। लीजिए यह कविता पढ़िए-

‘‘आज का पढ़ा या लिखा
पढ़ता या लिखता यह है
काम का बहाना किए
सड़कों पर दिखता यह है
आलम में डूबा हुआ
साहब या सूबा हुआ
केवल दंभ भरता है
मेहनत से डरता है
रोना किसान के मजदूर के दुखड़े पर
शीशे में हजार बार देखना मुखड़े को
काम से, पसीने से, कोई पहचान नहीं....''


ओह! माफ कीजिएगा; मैं भूल गया कि आपलोग तो हमेशा अपनी कहने और सुनाने वाले हैं; सो आपसबों के सामने यह सब कहना अपनी तमीज की थैली में पानी भरना है। खैर!

भवदीय
राजीव रंजन प्रसाद

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