वाह! रजीबा वाह!
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प्रोफेसर हो या प्राइम-मिनिस्टर, पी आप सिगरेट ही तो रहे हो!
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कल रास्ते में गार्जियन टाइप एक सज्जन मुझे सिगरेट फफकारते मिल गए। मैंने आदतन विनम्रतापूर्वक कहा-‘सर जी, यह आपको शोभा नहीं देता!’
इतना सुनते ही चीख पड़े ‘‘जानते हो मैं कौन हूं...,’’
मैने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए उनसे पूछ दिया; वे मुझ पर चिल्ला उठे।
‘‘मैं इस यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हूु, और आइंदा ऐसी बदतमीजी की, तो देख लूंगा...स्टूपिड!’’
‘‘ओए, प्रोफेसर हो या प्राइम-मिनिस्टर, पी आप सिगरेट ही तो रहे हो! ’’ इस बार सनकने की मुद्रा मेरी थी। मुझे जानने वाले ने कहा-‘‘भैया, जाने दीजिए...आप खाम-खां गले पड़ते हैं...,’’
मैं अपनी औकात पर आ गया, मेरी खामोशी देख वे दांत चिहार उठे।
मैं मन ही मन बुदबुदाया, ‘ऐसे प्रोफेसरानों की ऐसी न तैसी...!’
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