Wednesday, February 25, 2015

पान-पराग की मेहमाननवाजी में चमकते आधुनिक ‘भारत रत्न’

जिन्हें सिर्फ अपनी सूरत बनाने की होड़/चिंता हो...वे जनता की जिन्दगी ज़हीन ख़ाक बनाएंगे!
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राजीव रंजन प्रसाद
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देश-समाज के कुलदेवता वे महान हस्तियां मानी जाती हैं जो अपनी राष्ट्रीय अस्मिता, संस्कृति, संस्कार-बोध, परम्परा, भाषा, विचार, दृष्टिकोण आदि को गति देते हैं; दिशादर्शन करते हैं। जिनकी जड़ अपनी सरजमीं से गहरे जुड़ी होती हैं। उनका कहा-सुना देश-समाज की नवांकुर पीढ़ी को ओज, उर्जा, तेज, पराक्रम, शौर्य, वीरता, संकल्प, आत्मबलिदान आदि से सदैव लबरेज किए रखता है। ऐसे लोग सही मायने में हर दृष्टिकोण से सम्मानीय एवं आदरणीय होते हैं जिनके समक्ष देश की जनता सजदा करती है। क्योंकि उनकी उपस्थिति मात्र से देश की करोड़ों-करोड़ जनता को अपने जि़दा रहने का आत्मिक खुराक मिलता है। चाहे देश की राजनीति कितनी भी दलदल, पाखंड, शोषणमूलक, निरंकुश अथवा आतातायी कारपोरेटियों की गुलाम/शिकार क्यों न हो?

लेकिन आधुनिक समय में ये कुलदेवता कुलभक्षी हो गये हैं। वे सिगरेट, पान, तमबाकू बेचने वाले के गिरोह में शामिल हैं। उनके द्वारा किए जा रहे कथित समाज-कार्य और जनजागरण अभियान का हिस्सा बनते हैं। ऐसे विवेकहीन लोग जो अपनी ज़मीं की भाषा बांचने में अक्षम होते हैं। देश की सवा अरब की जनसंख्या वाली आबादी से मुखातिब होने के लिए हिन्दी के रोमनीकरण का आश्रय लेते हैं...ऐसे लोग माफ कीजिएगा! 'पाॅलिटिक्ल चियर्स लिडर्स' हो सकते हैं, लेकिन जनता या जनमानस के आंखों का नूर/कोहिनूर नहीं बन सकते हैं; ऐसे लोग अकूत प्रचारवादी तेवर के बदौलत लोकप्रिय हो सकते हैं; लेकिन लोकनायक अथवा लोकबंधु कदापि नहीं; हरगि़ज नहीं!


ऐसे जिन्दा आदमकद-बुतों के लिए चेतनाविहीन और विवेकहीन पत्रकारीय नियोक्ता/प्रबन्धक ही लिख सकते हैं:

'' Discover the future with thought leaders and opinion makers at the Starting Point of Tomorrow. ''



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(चित्र इंडिया टुडे के 4 मार्च, 2015 अंक से साभार सहित)

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