Friday, February 27, 2015

जो मिल रहा है, जैसा मिल रहा है, जितना मिल रहा है और जिस भी माध्यम में/से मिल रहा है; वही विश्व-ज्ञान है: प्रो. एसपी. त्यागराजन

आप यहां के शिक्षा-व्यवस्था से असंतुष्ट हो सकते हैं। यहां के कार्य-प्रणाली से असहमत हो सकते हैं। यह सब आपका व्यक्तिगत मामला है। हमारा काम बहुमत को लेकर चलना है। यदि आपके साथ कोई खड़ा नहीं है या कुछ लोग खड़े हैं, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि आपसे हम सहानुभूति जताते हुए आपको सही ठहरायें। आज हमसब देश-सेवा के निमित सारा कार्य कर रहे हैं। लोगों को शिक्षित बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कहीं किसी को एतराज नहीं है। आपके पेट में दर्द है, तो आप अपना इलाज कराएं; लेकिन यह न कहें कि सबके पेट में दर्द है और लोग विवशतावश बोल नहीं रहे हैं। यदि आप उच्च-शिक्षा में आकर और उसमें ज्ञान-कौशल सीखकर भी सच को सच नहीं कह पा रहे या अन्याय के खिलाफ विरोध नहीं कर रहे, तो यह सरासर ग़लती आपसबों की है। हमारा काम सब देखकर निर्णय करना है; कहा-सुना सच मानकर नहीं; हमें इतना ही करने की छूट है।

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