Thursday, February 26, 2015

पिता का पत्र पुत्र के नाम


प्रिय देव-दीप,

मैं चाहूं, तो हजारों पन्ने लिख सकता हूं। तुम्हें ब्लूमफील्ड के बारे में बता सकता हूं, तो किम्बल यंग के बारे में भी। यदि जानना चाहो, तो वैदिक-दर्शन, ज्ञान-मीमांसा पर भी बहुत कुछ तुम सबों के समक्ष परोस सकता हूं। यह सब कवायद इसलिए ताकि मैं तुमलोगों को विश्वास दिला सकूं कि मैं कुछ अच्छा करने की नियत, इच्छा और सामथ्र्य रखता हूं। लेकिन, देव-दीप, आजकल दुनिय फटाफट मुद्दे की बात चटपट करने की आदी हो गई है। बड़े होकर तुमसब भी हो जाओगे। व्यक्ति देश-काल-परिवेश से निरपेक्ष नहीं रह सकता है। उसे समय और परिस्थिति के अनुसार बदलना होता है। चाल्र्स डार्विन के अनुसार मनुष्य के बचे रहने की मुख्य शर्त यही है।

देव-दीप, लेकिन हजारों किताबों को पढ़ने के बाद और लोगों को जानने के बाद मैं जिस तरह भीड़ और रेले से स्वयं को बचा रख सका हूं, तो सिर्फ इस कारण कि मैं अपने परिवार, माता-पिता, रिश्ते-नाते से खूब-खूब प्यार करता हंू। तुम देखते हो न कि जब मेरे सर में दर्द होता है, तो तुम्हारी मम्मी कैसे सर में तेल घसती है। उसी तरह तुम्हारी मम्मी का पैर दिन भर की थकान से टूट या टटा रहा होता है, तो मैं भी उसकी थोड़ी-बहुत मदद करता हूं। वैसे मेरे अंदर इन सब से बचने की चतुराई बहुत रहती है; लेकिन मन में खोट नहीं है।

देव-दीप, स्त्रियां मनुष्य को पैदा ही नहीं करती हैं; बल्कि वह उनके साथ ताउम्र नाभिनाल की तरह जुड़ी रहती हैं। जैसे तुम्हारी दादाी मुझसे बात करते हुए रोने लगती है या फिर तुम्हारे दादा तुम्हारे खांसने मात्र से विचलित हो जाते हैं। देव-दीप, भारतीय समाज कुल बुराइयों के बीच आपसदारी के संवाद और सोहबत में जीता है। उसका हासिल बड़ा से बड़ा तर्जुबा लोक-समाज की पैदाइश होती है। इसके लिए मुझे इंटरनेट या गूगल पर जाने की जरूरत नहीं है। गूगल पर, तो ‘मैंगो’ मतलब अमरुद लिख दो, तो भी सही और सेव लिख दो, तो भी ठीक। वह बालू का कण सरीखा एक ही जगह असंख्य की मात्रा में मिलता है। सूचना, तथ्य और आंकड़ा के रूप में उड़ियाता है; लेकिन उसका महत्त्व तब तक नहीं है जब तक कि उसे किसी सन्दर्भ-विशेष से न जोड़ा जाए। 
देव-दीप, इन नौटंकीबाज मशीनी आइटमों के लिए अपनी असल ज़िंदगी खपाने की जरूरत नहीं है। हमें अपने जीवन में कुछ मंगलकारी मूल्य निर्धारित करने चाहिए। ऐसे सांस्कृतिक-पारम्परिक मूल्य जिससे सबका भला हो; किन्तु किसी का अहित न हो। इस दुनिया में सब अपने को विशेष मानते हैं। उन्हें अपनी काबिलियत पर गुमान और अहंकार होता है। लेकिन, वे यह नहीं सोचते कि जब तक यह भौतिक देह है, तभी तक इस अहंकार को आश्रय हासिल है। तभी तक आप प्राइम-मिनिस्टर हैं, तो देश के राष्ट्रपति। चित्ता जलने के बाद लोक में आपकी महत्ता और अर्थवत्ता कितनी है; इससे आपके बड़े और प्रतिष्ठाशाली होने का पता चलता है।

देव-दीप, आजकल कुछ दुत्तलछन लोग महात्मा गांधी की बुराई करते हैं, तो मदर टेरेसा पर छींटाकशी तक करने से नहीं चूकते हैं। लेकिन इन दोनों के सामने सायास-अनायास किसका सिर नहीं झुक जाता है। यह है असली वजूद, ताकत। अतः सब बातों के मूल में मुख्य बात यही है कि हमें अपने को पहचानना आना चाहिए। अपने को सामाजिक अनुशासनों के अनुसार बरतना आना चाहिए। नकलचियों, पाखंडियों, स्वांगधारियों के चेहरे खुद-ब-खुद बेनकाब हो जाते हैं। लेकिन सच्चा आदमी चाहे कितने भी मामूली जीवन-स्तर पर क्यों न जीता है; उसका सिर स्वाभिमान और आत्मसम्मान से हमेशा पुलकित रहता है। आपदोनों भी अच्छी पुस्तकों का संगत करना, उनका अध्ययन करना और दूसरों को बदलने को कहने से पूर्व अपने अंदर स्वेच्छापूर्वक, किन्तु सप्रयास उपयुक्त बदलाव जरूर लाना।

देव-दीप, मेरा साथ आपलोगों संग और कितने दिन रहेगा, आज कहना मुश्किल है। हो सकता है कि मैं प्रकृति के काम के लिए कहीं और नियुक्त कर दिया जाउं। लेकिन इस जीवन में, इस काया में, इस चेतना में मुझे आपलोगों का असीम प्यार और भरपूर दुलार मिला है; यह मेरी सर्वोत्तम उपलब्धि है।

अंतिम बात, जो मैंने इस दुनिया के पुरुषार्थियों से सीख व जान पाया; वह आपदोनों के भी बड़े काम की है। यथा:

1. जनसमूह संग हिल-मिल बोलो, स्वत्व न खोओ।: राबर्ट फाॅस्ट
2. हर कोई दुनिया बदलना चाहता है, लेकिन कोई खुद को बदलने के बारे में नहीं सोचता। : लियो टाॅलस्टाय
3. भारतीय दर्शन एवं चिन्तन के मुताबिक मानुष जीवन में दो चीजें अधिकतम महत्त्व रखती हैं: 
Will to live & Learn to live.


सस्नेह
राजीव

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